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    करो भजन मत डरो किसी से भजन संग्रह लिरिक्स

    क्यूँ गुमान करे काया का मन मेरे

    एक दिन छोड़ कर ये जहाँ जाना है
    नाम गुरु का सुमिर मन मेरे बावरे
    एक दिन छोड़ कर ये जहाँ जाना है।


    1.

    तूने संसार को तो है चाहा मगर
    नाम प्रभु का है तूने तो ध्याया नहीं
    मोह ममता में तू तो फँसा ही रहा
    ज्ञान गुरु का हृदय लगाया नहीं
    मौत नाचे तेरे सर पे ओ बावरे
    एक दिन छोड़ कर ये जहाँ जाना है।


    2.

    आयेगा जब बुलावा तेरा बावरे
    छोड़ के इस जहाँ को जाएगा तू
    साथ जाएगा ना एक तिनका कोई
    प्यारे रो-रो बहुत पछताएगा तू
    आज से अभी से लग जा तू राम में
    एक दिन छोड़ कर ये जहाँ जाना है।


    करो भजन मत डरो किसी से, ईश्वर के घर होगा मान

    इसी भजन से, राम भजन से, हृदय में उपजेगा ज्ञान॥

    भजन कियो प्रह्लाद भक्त ने, बार-बार कारज सार्यो।
    हिरणाकुश नै, हा असुर नै, राम नाम लाग्या खारा॥

    हिरणाकुश यूँ कहे पुत्र सँ – बचन नहीं मान्या मेरा।
    तोय भी मारता, बता सच, राम नाम है कहाँ तेरा॥


    शेर:
    राम तो मैं, राम मो में, राम ही हाजर खड़ा।
    पिता तुझको दीखे नहीं, तेरी फट गई बुद्धि बड़ा॥
    कष्ट देख्यो भक्त में तब, फाड़ खंभा निसर्या।
    रूप थो विकराल सिंह को, असुर ऊपर नख धर्या॥
    सहाय करी प्रह्लाद भक्त की, हिरणाकुश का लिया प्राण।


    भजन कियो ध्रुव बालपन में, बन में बैठ्यो ध्यान लगाय।

    अन्न-जल त्याग्या, त्याग दिया रे पान-पुष्प फल कुछ न खाय।
    कठिन तपस्या देख ध्रुव की, इन्द्र मन में गयो घबराय।
    परियाँ भेजी, भेज देयी, आयो ध्रुव को सत्य डिगाय॥


    शेर:
    हुक्म पाकर इन्द्र को बा परी ध्रुव पे आ गई।
    फैल फैल्या बहुत सा, बा तुरन्त मूर्छा खा गई।
    माता तेरी हूँ सही, उठ बोल मुख से यूं कही।
    ध्रुव ध्यान से चूक्यो नहीं, झक मारती पाछी गई।
    उसी वक्त प्रभु आकर ध्रुव को बैकुंठ का दिया वरदान।


    भजन कियो गजराज जिन्हों ने, डूबत महिमा कहूँ सारी।

    अर्ध रैन की टेर सुन, जाग उठे बनवारी॥
    लक्ष्मी बोली – हे महाराजा, रैन बड़ी है अंधियारी।
    ईश्वर कहता – मेरे भक्त पर, भीर पड़ी है अति भारी॥


    शेर:
    गरुड़ पे असवार हो के, पवन वेग पधारिया।
    गरुड़ हार्यो, तब बिसार्यो नाद, पैदल धाइया।
    अग्न कर प्रभु चक्र से, तिनहू को काट गिराया।
    ग्राह मारन, गज उबारन, नाथ भक्त बचाया।
    उसी वक्त वैकुण्ठ पठा दिये, गज और ग्राह की भक्ति पछान।


    भजन कियो द्रौपदी जिन्हों ने, दुष्ट दुःशासन आ घेरी।

    बा करुणा कीनी, बचावो, आज नाथ लज्जा मेरी।
    रटूं आपको नाम प्रेम से, हूँ चरणन की चित्त चेरी।
    मोहे दासी जान के पधारो, नाथ करो मतना देरी॥


    शेर:
    नगन होती द्रौपदी बा, भजन से छिन में तरी।
    चीर को नहीं अंत आयो, दुष्ट हार्यो उस घड़ी।
    भजन ही है सार बन्दे, धार मन में तू हरी।
    भजन ही के काज देखो, लाज द्रौपदी की रही।
    श्री लाल गोरीदत्त गाता – भजन किए से हो कल्याण॥

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