शँकर तेरी जटा मे बहती है गंग धारा भजन लिरिक्स

शँकर तेरी जटा मे बहती है गंग धारा ।

काली घंटा के अन्दर जिमि दामिनी उजारा ।।

गल मुण्डमाल राजे , शशि भाल मे विराजे ।

डमरू निनाद वाजे , कर मे त्रिशूल धारा ।।

दृग तीन तेज राशी , कटिबन्ध नाग फाँसी ।

गिरिजा है संग दासी , सब विश्व के अधारा ।।

मृग चर्म बसन धारी , वृषराज पर सवारी ।

निज भक्त दु:ख हारी , कैलाश मे बिहारा ।।

शिव नाम जो उच्चारे , सब पाप दोष टारे ।

ब्रह्मानन्द ना बिसारे , भव सिन्धु पार तारे ।।

शँकर तेरी जटा मे बहती है गंग धारा ।

काली घंटा के अन्दर जिमि दामिनी उजारा ।।


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