।। दोहा ।।
पाप कर्म को छोड़ दे, फिर चिंता नहीं होय।
मानो सारे जगत में, शत्रु रहा ना कोई।
~ म्हारा हरिया बन रा सुवटिया ~
म्हारा हरिया बन रा सुवटिया,
तने राम मिले तो कहिजे रे।
राम मिले तो कहिजे रे,
घनश्याम मिले तो कहिजे रे।
म्हारा हरिया बन रा सुवटिया,
तने राम मिले तो कहिजे रे।
पांच तत्व का बणिया पिंजरा,
ज्यामे बैठ्यो रिज्ये रे।
यो पिंजरों अब भयो पुराणों,
नित नई खबरां दिज्ये रे।
म्हारा हरिया बन रा सुवटिया,
तने राम मिले तो कहिजे रे। टेर। ….
इस पिंजरे के दस दरवाजा,
आतो जातो रहिजे रे।
अरे रामनाम की भरले नोका,
नित भजना में रहीज्ये रे।
म्हारा हरिया बन रा सुवटिया,
तने राम मिले तो कहिजे रे। टेर। ….
काम क्रोध मद लोभ त्याग ने,
गुरु चरणा में रहीज्ये रे।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर,
चित चरणा में रहीज्ये रे।
म्हारा हरिया बन रा सुवटिया,
तने राम मिले तो कहिजे रे। टेर। ….
म्हारा हरिया बन रा सुवटिया,
तने राम मिले तो कहिजे रे।
राम मिले तो कहिजे रे,
घनश्याम मिले तो कहिजे रे।
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