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    म्हारे गुरांजी मिलण रो पूरो चाव भजन लिरिक्स

    श्री रति नाथजी भजन लिरिक्स लिखित में

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    म्हारे गुरांजी मिलण रो पूरो चाव भजन लिरिक्स

    म्हारे गुरांजी मिलण रो पूरो चाव, उम्मेदी दिल में लाग रही ॥


    म्हारे उम्मेदी ऐसी लगी जी, निर्धानियां धन होय।
    बांझनार पुत्र ने तरसे, मैं तरसुं दाता तोय ॥1॥


    नैया पड़ी मझधार में जी, अध बिच झोला खाय।
    सतगुरु केवटिया होकर म्हारी नैया नै पार लगाय ॥2॥


    सतगुरु मेरे समद हैं जी, मैं गलियन को नीर।
    उलट समद में मिल गई, कंचन भयो शरीर ॥3॥


    जग रूठे तो रूठन दे, मेरे सतगुरु रूठे नांय।
    जो मेरे दाता राजी हों तो, रूठ्या मना लू करतार ॥4॥


    गुरु गहरा गुरु भावरा गुरु देवन के देव।
    रामानन्द जीरा भणत कबीरा, केवल पायो उपदेश ॥5॥

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