दर्शन दो घनश्याम नाथ, मोरी अखियाँ प्यासी रे !
मन मंदिर की ज्योत जगा दो घट घट वासी रे ||
दर्शन दो घनश्याम नाथ, मोरी अखियाँ प्यासी रे ||
मंदिर मंदिर मूरत तेरी फिर भी न दिखे सूरत तेरी !
युग बीते न आई मिल्न की पूरणमाशी रे ||
दर्शन दो घनश्याम नाथ, मोरी अखियाँ प्यासी रे ||
द्वार दया का तू जब खोले पंचम स्वर में गूंगा बोले !
अँधा देखे लंगड़ा चल चल पोंछे काशी रे ||
दर्शन दो घनश्याम नाथ, मोरी अखियाँ प्यासी रे ||
पानी पी कर प्यास बुजाऊ नैनं को कैसे समजाऊ !
आँख मचोलो छोड़ो अब तो मन के हासी रे ||
दर्शन दो घनश्याम नाथ, मोरी अखियाँ प्यासी रे ||